स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित आंदोलन एवं वर्ष
बंग-भंग आंदोलन, जिसे स्वदेशी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। यह आंदोलन 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में शुरू हुआ था।
बंग-भंग आंदोलन के बारे में तथ्य
- बंगाल का विभाजन: बंग-भंग आंदोलन का मुख्य कारण बंगाल का विभाजन था, जो लॉर्ड कर्जन द्वारा 1905 में किया गया था।
- स्वदेशी उत्पादों का समर्थन: इस आंदोलन के दौरान, लोगों ने स्वदेशी उत्पादों का समर्थन करने और विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया।
- राष्ट्रीय जागरूकता: बंग-भंग आंदोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा दिया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
आंदोलन के परिणाम
- बंगाल के विभाजन का रद्द होना: बंग-भंग आंदोलन के परिणामस्वरूप, बंगाल के विभाजन को 1911 में रद्द कर दिया गया था।
- स्वतंत्रता संग्राम को बल: इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया और लोगों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
मुस्लिम लीग की स्थापना( 1906 ई.)
मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर 1906 को ढाका में हुई थी, जो ब्रिटिश भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा और प्रतिनिधित्व करने के लिए एक राजनीतिक दल के रूप में काम करने के लिए बनाई गई थी।
मुस्लिम लीग की स्थापना के कारण
- मुस्लिम हितों की रक्षा: मुस्लिम लीग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा और प्रतिनिधित्व करना था।
- हिंदू-मुस्लिम विभाजन: मुस्लिम लीग की स्थापना ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा दिया, जो बाद में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुस्लिम लीग की भूमिका
- मुस्लिम हितों का प्रतिनिधित्व: मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश भारत में मुसलमानों के हितों का प्रतिनिधित्व किया और उनकी मांगों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखा।
- पाकिस्तान के निर्माण में भूमिका: मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश बन गया।
कांग्रेस का बंटवारा( 1907 ई.)
कांग्रेस का बंटवारा 1907 में सूरत अधिवेशन में हुआ था, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो गई थी: गरम दल और नरम दल।
कांग्रेस के बंटवारे के कारण
- गरम दल और नरम दल के बीच मतभेद: कांग्रेस के बंटवारे का मुख्य कारण गरम दल और नरम दल के बीच मतभेद था, जो आंदोलन की रणनीति और तरीकों पर असहमति के कारण उत्पन्न हुए थे।
- स्वराज की मांग: गरम दल के नेता स्वराज की मांग को अधिक जोरदार तरीके से उठाना चाहते थे, जबकि नरम दल के नेता ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग और सुधारों के माध्यम से स्वराज की मांग को पूरा करने के पक्ष में थे।
गरम दल और नरम दल के नेता
- गरम दल: गरम दल के नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल प्रमुख थे।
- नरम दल: नरम दल के नेताओं में गोपाल कृष्ण गोखले और सुरेंद्रनाथ बनर्जी प्रमुख थे।
होमरूल आंदोलन (1916 ई.)
होमरूल आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारत को स्वशासन या होमरूल प्रदान करना था।
होमरूल आंदोलन के कारण
- स्वशासन की मांग: होमरूल आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन प्रदान करना था।
- प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत की भागीदारी और युद्ध के बाद स्वशासन की मांग ने होमरूल आंदोलन को बढ़ावा दिया।
होमरूल आंदोलन के नेता
- बाल गंगाधर तिलक: बाल गंगाधर तिलक होमरूल आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने महाराष्ट्र में होमरूल लीग की स्थापना की।
- एनी बेसेंट: एनी बेसेंट ने भी होमरूल आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मद्रास में होमरूल लीग की स्थापना की।
होमरूल आंदोलन का महत्व
- स्वशासन की मांग को बढ़ावा: होमरूल आंदोलन ने भारत में स्वशासन की मांग को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
- राष्ट्रीय जागरूकता: होमरूल आंदोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीय जागरूकता को बढ़ावा दिया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
लखनऊ पैक्ट( दिसंबर 1916 ई.)
लखनऊ पैक्ट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के बीच एक ऐतिहासिक समझौता था, जो दिसंबर 1916 में लखनऊ में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ था।
लखनऊ पैक्ट के मुख्य बिंदु
- हिंदू-मुस्लिम एकता: लखनऊ पैक्ट ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जब कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने संयुक्त रूप से ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी मांगें रखीं।
- संवैधानिक सुधार: लखनऊ पैक्ट में संवैधानिक सुधारों की मांग की गई, जिसमें प्रांतीय स्वायत्तता और भारतीयों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व शामिल था।
लखनऊ पैक्ट का महत्व
- हिंदू-मुस्लिम सहयोग: लखनऊ पैक्ट ने हिंदू-मुस्लिम सहयोग को बढ़ावा दिया और दोनों समुदायों के बीच एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
- स्वतंत्रता संग्राम को बल: लखनऊ पैक्ट ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया और ब्रिटिश सरकार के सामने भारतीयों की मांगों को अधिक प्रभावी ढंग से रखने में मदद की।
मांटेग्यू घोषणा ( 20 अगस्त 1917 ई.)
मांटेग्यू घोषणा ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई एक महत्वपूर्ण घोषणा थी, जिसमें भारत में संवैधानिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था।
मांटेग्यू घोषणा के मुख्य बिंदु
- संवैधानिक सुधार: मांटेग्यू घोषणा में भारत में संवैधानिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसमें भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व और शासन में भागीदारी देने की बात कही गई।
- जिम्मेदार सरकार: मांटेग्यू घोषणा में जिम्मेदार सरकार की स्थापना की दिशा में काम करने की बात कही गई, जिसमें भारतीयों को अधिक शक्तियां देने की बात कही गई।
मांटेग्यू घोषणा का महत्व
- संवैधानिक सुधारों की दिशा में कदम: मांटेग्यू घोषणा ने भारत में संवैधानिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व और शासन में भागीदारी देने की दिशा में काम करने की बात कही।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल: मांटेग्यू घोषणा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया और ब्रिटिश सरकार के सामने भारतीयों की मांगों को अधिक प्रभावी ढंग से रखने में मदद की।
रौलेट एक्ट ( 19 मार्च 1919 ई. )
रौलेट एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित एक कानून था, जिसने भारतीयों के अधिकारों को सीमित करने और सरकार को अधिक शक्ति देने का प्रयास किया।
रौलेट एक्ट के मुख्य बिंदु
- सरकार को अधिक शक्ति: रौलेट एक्ट ने सरकार को अधिक शक्ति दी, जिससे वह बिना मुकदमे के लोगों को गिरफ्तार और जेल में डाल सकती थी।
- नागरिक अधिकारों का हनन: रौलेट एक्ट ने भारतीयों के नागरिक अधिकारों का हनन किया और उन्हें सरकार के खिलाफ बोलने से रोका।
रौलेट एक्ट का विरोध
- भारतीयों का विरोध: रौलेट एक्ट का भारतीयों ने व्यापक रूप से विरोध किया और इसे "ब्लैक एक्ट" कहा।
- महात्मा गांधी की भूमिका: महात्मा गांधी ने रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया और इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।
रौलेट एक्ट का महत्व
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल: रौलेट एक्ट ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया।
- महात्मा गांधी की सत्याग्रह: रौलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी की सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नए युग की शुरुआत की।
जालियांवाला बाग हत्याकांड ( 13 अप्रैल 1919 ई )
जालियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास की एक दर्दनाक घटना है, जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे भारतीयों पर गोलीबारी की, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
जालियांवाला बाग हत्याकांड के कारण
- रौलेट एक्ट का विरोध: जालियांवाला बाग हत्याकांड का कारण रौलेट एक्ट का विरोध था, जिसका भारतीयों ने व्यापक रूप से विरोध किया था।
- ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति: ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति ने भारतीयों को आक्रोशित कर दिया था, जिससे वे विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए।
जालियांवाला बाग हत्याकांड की घटना
- गोलीबारी: 13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग में एक सभा आयोजित की गई थी, जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी।
- सैकड़ों लोग मारे गए: इस गोलीबारी में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
जालियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल: जालियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया।
- महात्मा गांधी की भूमिका: जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया।
खिलाफत आंदोलन ( 1919 ई.)
खिलाफत आंदोलन एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें भारतीय मुसलमानों ने तुर्क खिलाफत के समर्थन में एक आंदोलन चलाया था।
खिलाफत आंदोलन के कारण
- तुर्क खिलाफत का विघटन: प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क खिलाफत का विघटन हो रहा था, जिसका भारतीय मुसलमानों ने विरोध किया।
- मुस्लिम भावनाएं: तुर्क खिलाफत के विघटन से मुस्लिम भावनाएं आहत हुईं और उन्होंने इसके समर्थन में एक आंदोलन चलाने का निर्णय किया।
खिलाफत आंदोलन की विशेषता
- हिंदू-मुस्लिम एकता: खिलाफत आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया, जब महात्मा गांधी ने मुसलमानों के साथ एकजुटता दिखाई।
- असहयोग आंदोलन: खिलाफत आंदोलन के साथ असहयोग आंदोलन भी चलाया गया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं करना था।
खिलाफत आंदोलन का प्रभाव
- राष्ट्रीय आंदोलन को बल: खिलाफत आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को बल दिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया।
- हिंदू-मुस्लिम संबंध: खिलाफत आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को मजबूत किया, लेकिन बाद में यह आंदोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सका।
हंटर कमिटी की रिपोर्ट प्रकाशित ( 18 मई 1920 ई.)
हंटर कमिटी की रिपोर्ट 18 मई 1920 ई को प्रकाशित हुई थी। यह रिपोर्ट जालियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए गठित हंटर आयोग द्वारा तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार की भूमिका की आलोचना की गई थी और इसमें कई महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल थीं।
हंटर कमिटी की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- जालियांवाला बाग हत्याकांड की निंदा: रिपोर्ट में जालियांवाला बाग हत्याकांड की निंदा की गई और इसे एक अनावश्यक और अत्यधिक कार्रवाई बताया गया।
- ब्रिटिश सरकार की भूमिका की आलोचना: रिपोर्ट में ब्रिटिश सरकार की भूमिका की आलोचना की गई और इसमें जनरल डायर के कार्यों को अनुचित बताया गया।
- सिफारिशें: रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल थीं, जिनमें ब्रिटिश सरकार को भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन ( दिसंबर 1920 ई.)
कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन दिसंबर 1920 में आयोजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता वीर राघवाचारी ने की थी। इस अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं करना था। इसके अलावा, कांग्रेस ने भाषाई आधार पर प्रांतों के गठन की बात भी कही थी।
नागपुर अधिवेशन के महत्वपूर्ण बिंदु:
- असहयोग आंदोलन: इस अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं करना था।
- भाषाई आधार पर प्रांतों का गठन: कांग्रेस ने भाषाई आधार पर प्रांतों के गठन की बात कही, जिससे प्रशासन को अधिक प्रभावी और सुव्यवस्थित बनाया जा सके।
- राष्ट्रीय शिक्षा और सामाजिक सुधार: इस अधिवेशन में राष्ट्रीय शिक्षा और सामाजिक सुधार पर भी जोर दिया गया था।
- महत्वपूर्ण निर्णय: नागपुर अधिवेशन में लिए गए निर्णयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
असहयोग आंदोलन की शुरुआत ( 1 अगस्त 1920 ई.)
असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसकी शुरुआत 1 अगस्त 1920 ई. को हुई थी। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं करना और उनके द्वारा लगाए गए कानूनों और नीतियों का विरोध करना था।
असहयोग आंदोलन के मुख्य बिंदु
- ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं: असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग नहीं करना और उनके द्वारा लगाए गए कानूनों और नीतियों का विरोध करना था।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: आंदोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने पर जोर दिया गया।
- ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार: आंदोलन के दौरान ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार किया गया और लोगों को स्वदेशी अदालतों में जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
चौरी-चौरा कांड (5 फरवरी 1922 ई.)
चौरी-चौरा कांड एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी, जो संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के चौरी-चौरा में हुई थी। इस घटना में असहयोग आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस ने गोलीबारी की और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए।
चौरी-चौरा कांड के कारण
- असहयोग आंदोलन: चौरी-चौरा कांड का कारण असहयोग आंदोलन था, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया जा रहा था।
- पुलिस की दमनकारी नीति: पुलिस की दमनकारी नीति ने प्रदर्शनकारियों को आक्रोशित कर दिया और वे हिंसक हो गए।
चौरी-चौरा कांड की घटना
- प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प: 5 फरवरी 1922 को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस ने गोलीबारी की।
- पुलिस थाने में आग: प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए।
स्वराज्य पार्टी की स्थापना ( 1 जनवरी 1923 ई.)
स्वराज्य पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 ई. को हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर से ही ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करके स्वराज्य प्राप्त करना था। इस पार्टी की स्थापना चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने की थी।
स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य
- स्वराज्य प्राप्त करना: स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से स्वराज्य प्राप्त करना था।
- कांग्रेस के भीतर से काम करना: पार्टी ने कांग्रेस के भीतर से काम करने का निर्णय किया, ताकि वे कांग्रेस के सदस्यों को अपने साथ जोड़ सकें।
- चुनाव में भाग लेना: पार्टी ने चुनाव में भाग लेने का निर्णय किया, ताकि वे विधायिकाओं में पहुंचकर ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग कर सकें।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (अक्टूबर 1924 ई.)
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) की स्थापना अक्टूबर 1924 ई. में हुई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना और एक स्वतंत्र गणराज्य की स्थापना करना था। इस संगठन की स्थापना राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने की थी।
एचआरए के मुख्य उद्देश्य
- ब्रिटिश शासन का विरोध: एचआरए का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना और भारत को स्वतंत्र करना था।
- गणराज्य की स्थापना: संगठन का उद्देश्य एक स्वतंत्र गणराज्य की स्थापना करना था, जिसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर हों।
- क्रांतिकारी गतिविधियाँ: एचआरए ने क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा दिया, जैसे कि बम बनाना, हथियार इकट्ठा करना और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना।
एचआरए की गतिविधियाँ
- काकोरी कांड: एचआरए के सदस्यों ने काकोरी कांड में भाग लिया, जिसमें उन्होंने एक ट्रेन को लूटने का प्रयास किया।
- ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष: संगठन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया और कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया।
साइमन कमीशन की नियुक्ति ( 8 नवंबर 1927 ई.)
साइमन कमीशन की नियुक्ति 8 नवंबर 1927 ई. को ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा करना और यह निर्धारित करना था कि क्या भारत स्वशासन के लिए तैयार है। इस आयोग का नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया था।
साइमन कमीशन के सदस्य:
- सर जॉन साइमन (अध्यक्ष)
- क्लीमेंट एटली
- हैरी लेवी-लॉसन
- एडवर्ड कैडोगन
- वरनोन हारटशोर्न
- जॉर्ज लेन-फॉक्स
- डोनाल्ड हॉवर्ड
साइमन कमीशन के मुख्य सुझाव:
- भारत में एक संघ की स्थापना: जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतें शामिल हों।
- प्रांतीय क्षेत्र में उत्तरदायी सरकार: जिसमें विधि और व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गठित की जाए।
- साइमन कमीशन का विरोध:
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग का विरोध: आयोग के गठन की घोषणा से चौरीचौरा की घटना के बाद रुका हुआ राष्ट्रीय आंदोलन पुनः गतिमान हो गया।
- साइमन गो बैक के नारे: पूरे देश में साइमन गो बैक के नारे लगाए गए और काले झंडे दिखाए गए।
- लाला लाजपत राय की मृत्यु: लाहौर में पुलिस की लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई, जिससे आंदोलन और भी तेज हो गया।
साइमन कमीशन का भारत आगमन ( 3 फरवरी 1928 ई.)
साइमन कमीशन का भारत आगमन 3 फरवरी 1928 ई. को हुआ था, जिसका उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा करना और यह निर्धारित करना था कि क्या भारत स्वशासन के लिए तैयार है। हालांकि, आयोग के सभी सदस्य ब्रिटिश थे, जिससे भारतीयों में आक्रोश फैल गया और उन्हें लगा कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है।
साइमन कमीशन के भारत आगमन का विरोध
- व्यापक विरोध प्रदर्शन: साइमन कमीशन के भारत आगमन पर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें लोगों ने काले झंडे दिखाए और "साइमन गो बैक" के नारे लगाए।
- लाला लाजपत राय की मृत्यु: लाहौर में पुलिस की लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई, जिससे आंदोलन और भी तेज हो गया।
नेहरू रिपोर्ट ( अगस्त 1928 ई.)
नेहरू रिपोर्ट अगस्त 1928 ई. में प्रस्तुत की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करना था। इस रिपोर्ट का नाम इसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था।
नेहरू रिपोर्ट के मुख्य सुझाव
- डोमिनियन स्टेटस: रिपोर्ट में भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की सिफारिश की गई थी, जिसका अर्थ था कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए भी अपनी आंतरिक और बाहरी नीतियों पर नियंत्रण रख सकेगा।
- संघीय संरचना: रिपोर्ट में भारत के लिए एक संघीय संरचना की सिफारिश की गई थी, जिसमें केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन होगा।
- प्रांतीय स्वायत्तता: रिपोर्ट में प्रांतों को अधिक स्वायत्तता देने की सिफारिश की गई थी, जिससे वे अपने मामलों को अधिक प्रभावी ढंग से संभाल सकें।
- मताधिकार: रिपोर्ट में वयस्क मताधिकार की सिफारिश की गई थी, जिसका अर्थ था कि सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार होगा।
बारदौली सत्याग्रह ( अक्टूबर 1928 ई.)
बारदौली सत्याग्रह अक्टूबर 1928 ई. में गुजरात के बारदौली क्षेत्र में हुआ था, जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था। इस सत्याग्रह का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए अत्यधिक लगान के विरोध में था।
बारदौली सत्याग्रह के कारण
- लगान में वृद्धि: ब्रिटिश सरकार ने बारदौली क्षेत्र में लगान में अत्यधिक वृद्धि की थी, जिससे किसानों को भारी परेशानी हो रही थी।
- किसानों की मांग: किसानों ने लगान में कमी की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी मांगों को अनदेखा कर दिया।
बारदौली सत्याग्रह की विशेषताएं
- अहिंसक प्रतिरोध: बारदौली सत्याग्रह एक अहिंसक प्रतिरोध था, जिसमें किसानों ने ब्रिटिश सरकार के आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया।
- नेतृत्व: सरदार वल्लभभाई पटेल ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया और किसानों को संगठित किया।
- सफलता: बारदौली सत्याग्रह सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को लगान में कमी करनी पड़ी।
लाहौर पड्यंत्र केस ( 8 अप्रैल 1929 ई ).
लाहौर षड्यंत्र केस 8 अप्रैल 1929 ई. को हुआ था, जिसमें भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके थे। इस घटना के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।
लाहौर षड्यंत्र केस के मुख्य बिंदु
- बम फेंकने की घटना: भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके थे, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को चुनौती देना था।
- गिरफ्तारी और मुकदमा: दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।
- मृत्युदंड: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन ( दिसंबर 1929 ई.)
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन दिसंबर 1929 ई. में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इस अधिवेशन में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लाहौर अधिवेशन के मुख्य निर्णय
- पूर्ण स्वराज की मांग: लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग की, जिसका अर्थ था कि भारत को ब्रिटिश शासन से पूरी तरह से मुक्त होना चाहिए।
- स्वतंत्रता दिवस की घोषणा: इस अधिवेशन में 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी: लाहौर अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी के लिए भी निर्णय लिया गया था।
लाहौर अधिवेशन का महत्व
- पूर्ण स्वराज की मांग: लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- स्वतंत्रता दिवस की घोषणा: 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा ने भारतीयों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वाधीनता दिवस की घोषणा ( 2 जनवरी 1930 ई.)
स्वाधीनता दिवस की घोषणा 2 जनवरी 1930 ई. को की गई थी, जिसमें 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी। यह घोषणा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में की गई थी, जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग की गई थी और सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी के लिए भी निर्णय लिया गया था।
स्वाधीनता दिवस की घोषणा के प्रमुख बिंदु:
- पूर्ण स्वराज की मांग: कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग की, जिसका अर्थ था कि भारत को ब्रिटिश शासन से पूरी तरह से मुक्त होना चाहिए।
- स्वाधीनता दिवस की तारीख: 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन: इस अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारी के लिए भी निर्णय लिया गया था, जिसकी शुरुआत महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के साथ की थी।
नमक सत्याग्रह ( 12 मार्च 1930 ई. से 5 अप्रैल 1930 ई. तक)
नमक सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के विरोध में था, जो भारतीयों के लिए नमक के उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार था।
नमक सत्याग्रह के मुख्य बिंदु
- नमक कर का विरोध: नमक सत्याग्रह का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के विरोध में था, जो भारतीयों के लिए नमक के उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार था।
- डांडी मार्च: महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी तक एक मार्च का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने नमक कर के विरोध में समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया।
- व्यापक समर्थन: नमक सत्याग्रह को व्यापक समर्थन मिला, जिसमें विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग शामिल हुए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन ( 6 अप्रैल 1930 ई.)
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के कानूनों और नीतियों का उल्लंघन करना और भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करना था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के मुख्य बिंदु
- अहिंसक प्रतिरोध: सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य तरीका अहिंसक प्रतिरोध था, जिसमें भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार के कानूनों और नीतियों का उल्लंघन किया।
- नमक सत्याग्रह: सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नमक सत्याग्रह था, जिसमें महात्मा गांधी ने नमक कर के विरोध में समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया।
- व्यापक समर्थन: सविनय अवज्ञा आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला, जिसमें विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग शामिल हुए।
प्रथम गोलमेज आंदोलन ( 12 नवंबर 1930 ई.)
प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत के लिए संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना था। हालांकि, इस सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, जिससे इसकी सफलता सीमित रही।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन के मुख्य बिंदु
- ब्रिटिश सरकार की पहल: प्रथम गोलमेज सम्मेलन ब्रिटिश सरकार की पहल पर आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत के लिए संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करना था।
- कांग्रेस का बहिष्कार: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि ब्रिटिश सरकार के इरादे संदेहास्पद हैं।
- सीमित सफलता: इस सम्मेलन की सफलता सीमित रही, क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिए जा सके।
गांधी-इरविन समझौता (8 मार्च 1931 ई.)
गांधी-इरविन समझौता 8 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच हुआ था। इस समझौते के तहत, ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा करने और नमक के उत्पादन पर लगे प्रतिबंधों को शिथिल करने का वादा किया।
गांधी-इरविन समझौते के मुख्य बिंदु
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का स्थगन: महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया।
- गिरफ्तार लोगों की रिहाई: ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा करने का वादा किया।
- नमक के उत्पादन पर प्रतिबंधों में शिथिलता: ब्रिटिश सरकार ने नमक के उत्पादन पर लगे प्रतिबंधों को शिथिल करने का वादा किया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन ( 7 सितंबर 1931 ई.)
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक लंदन में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भाग लिया, जिसका प्रतिनिधित्व महात्मा गांधी ने किया। उनके साथ सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय और एनी बेसेंट ने भी भाग लिया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के मुख्य बिंदु:
- महात्मा गांधी की भागीदारी: महात्मा गांधी ने इस सम्मेलन में भाग लिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया।
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का मुद्दा: इस सम्मेलन में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर की मांग: डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलित वर्गों के लिए अलग प्रतिनिधित्व की मांग की, जिसे महात्मा गांधी ने अस्वीकार कर दिया।
- महात्मा गांधी का प्रस्ताव: महात्मा गांधी ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की और कहा कि साम्प्रदायिक समस्या का समाधान भारतीय प्रतिनिधियों द्वारा आपसी समझौते से किया जाना चाहिए।
कम्युनल अवार्ड (साम्प्रदायिक पंचाट) ( 16 अगस्त 1932 ई.)
कम्युनल अवार्ड, जिसे साम्प्रदायिक पंचाट के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश सरकार द्वारा 16 अगस्त 1932 को घोषित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग प्रतिनिधित्व प्रदान करना था। इस पंचाट में दलित वर्गों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा।
कम्युनल अवार्ड के मुख्य बिंदु
- अलग प्रतिनिधित्व: कम्युनल अवार्ड में दलित वर्गों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था, जिससे उन्हें अपनी विशिष्ट पहचान और अधिकारों के लिए एक मंच मिल सके।
- सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व: इस पंचाट में विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था, जिससे प्रत्येक समुदाय को अपनी विशिष्ट पहचान और अधिकारों के लिए एक मंच मिल सके।
- महात्मा गांधी का विरोध: महात्मा गांधी ने कम्युनल अवार्ड का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह भारत की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक होगा।
पूना पैक्ट ( सितंबर 1932 ई.)
पूना पैक्ट 24 सितंबर 1932 को महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के बीच हुआ था। यह पैक्ट ब्रिटिश सरकार के कम्युनल अवार्ड के बाद हुआ था, जिसमें दलित वर्गों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था। महात्मा गांधी ने इस प्रावधान का विरोध किया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह भारत की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक होगा।
पूना पैक्ट के मुख्य बिंदु
- संयुक्त निर्वाचक मंडल: पूना पैक्ट में दलित वर्गों के लिए संयुक्त निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया था, जिसमें सभी वर्गों के लोग एक साथ मतदान करेंगे।
- आरक्षित सीटें: दलित वर्गों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा दी गई थी, जिससे उन्हें अपनी विशिष्ट पहचान और अधिकारों के लिए एक मंच मिल सके।
- महात्मा गांधी का आमरण अनशन: महात्मा गांधी ने कम्युनल अवार्ड के विरोध में आमरण अनशन शुरू कर दिया था, जिसे पूना पैक्ट के बाद समाप्त कर दिया गया था।
तृतीय गोलमेज सम्मेलन ( 17 नवंबर 1932 ई.)
तृतीय गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक लंदन में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, क्योंकि महात्मा गांधी पूना पैक्ट के बाद जेल में थे और कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के साथ बातचीत में कोई रुचि नहीं दिखाई।
तृतीय गोलमेज सम्मेलन के मुख्य बिंदु
- कांग्रेस का बहिष्कार: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिससे इसकी सफलता सीमित रही।
- सीमित प्रतिनिधित्व: इस सम्मेलन में विभिन्न दलों और समुदायों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, लेकिन कांग्रेस की अनुपस्थिति ने इसकी प्रभावशीलता को कम कर दिया।
- संवैधानिक सुधार: इस सम्मेलन में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा हुई, लेकिन कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिए गए।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन ( मई 1934 ई.)
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन 1934 में जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव और बसावन सिंह सिन्हा द्वारा किया गया था। इस पार्टी का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारों को बढ़ावा देना और देश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना था।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के मुख्य उद्देश्य
- समाजवादी विचारों का प्रसार: इस पार्टी का उद्देश्य कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारों को बढ़ावा देना और समाजवादी नीतियों को लागू करना था।
- आर्थिक और सामाजिक सुधार: कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का उद्देश्य देश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना और गरीबी, असमानता और अन्याय को दूर करना था।
- किसानों और मजदूरों के अधिकार: इस पार्टी ने किसानों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने और उनके हितों को बढ़ावा देने का प्रयास किया।
फॉरवर्ड ब्लाक का गठन ( 1 मई 1939 ई.)
फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन 1 मई 1939 ई. को नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया था। यह एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जिसका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारों को बढ़ावा देना और देश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना था।
फॉरवर्ड ब्लॉक के मुख्य उद्देश्य:
- समाजवादी विचारों का प्रसार: फॉरवर्ड ब्लॉक का उद्देश्य कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारों को बढ़ावा देना और समाजवादी नीतियों को लागू करना था।
- आर्थिक और सामाजिक सुधार: इस दल का उद्देश्य देश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना और गरीबी, असमानता और अन्याय को दूर करना था।
- स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भूमिका: फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया।
मुक्ति दिवस ( 22 दिसंबर 1939 ई )
मुक्ति दिवस 22 दिसंबर 1939 ई. को मनाया गया था, जब क्रिप्स मिशन के तहत ब्रिटिश सरकार ने भारत को मुक्त करने का वादा किया था। हालांकि, यह वादा अधूरा रहा और भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अभी भी लंबा संघर्ष करना पड़ा।
मुक्ति दिवस का महत्व
- स्वतंत्रता की आशा: मुक्ति दिवस ने भारतीयों में स्वतंत्रता की आशा जगाई और उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
- राष्ट्रीय एकता: इस दिवस ने भारतीयों को एकजुट करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पाकिस्तान की मांग ( 24 मार्च 1940 ई.)
पाकिस्तान की मांग 24 मार्च 1940 ई. को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में की गई थी। इस अधिवेशन की अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। लाहौर प्रस्ताव में मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की मांग की गई थी, जहां वे अपने धार्मिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा कर सकें।
लाहौर प्रस्ताव की मुख्य बातें:
- स्वतंत्र राज्य की मांग: मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की मांग की गई थी।
- धार्मिक और सामाजिक अधिकार: इस राज्य में मुसलमान अपने धार्मिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे।
- आधार: यह प्रस्ताव द्विराष्ट्र सिद्धांत पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं
अगस्त प्रस्ताव ( 8 अगस्त 1940 ई.)
अगस्त प्रस्ताव 8 अगस्त 1940 ई. को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस प्रस्ताव में भारत के लिए एक संविधान सभा के गठन का वादा किया गया था, जिसमें भारतीयों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी और उन्हें अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाएगी।
अगस्त प्रस्ताव की मुख्य बातें:
- संविधान सभा का गठन: भारत के लिए एक संविधान सभा के गठन का वादा किया गया था, जिसमें भारतीयों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।
- स्वायत्तता की बढ़ती भूमिका: इस प्रस्ताव में भारतीयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने का वादा किया गया था।
- युद्ध के बाद की योजना: यह प्रस्ताव द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत के लिए एक नए संविधान के विकास की योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव ( मार्च 1942 ई.)
क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव मार्च 1942 ई. में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस प्रस्ताव में भारत को डोमिनियन का दर्जा देने का वादा किया गया था, जिसमें भारतीयों को अपने संविधान का निर्माण करने की अनुमति दी जाएगी।
क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव की मुख्य बातें:
- डोमिनियन का दर्जा: भारत को डोमिनियन का दर्जा देने का वादा किया गया था, जिसमें भारतीयों को अपने संविधान का निर्माण करने की अनुमति दी जाएगी।
- संविधान सभा का गठन: एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसमें भारतीय प्रतिनिधि भाग लेंगे और भारत के नए संविधान का निर्माण करेंगे।
- प्रांतीय विधानसभाओं की भूमिका: प्रांतीय विधानसभाओं को संविधान सभा के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार दिया गया था।
भारत छोड़ो प्रस्ताव ( 8 अगस्त 1942 ई ).
शिमला सम्मेलन ( 25 जून 1945 ई.)
नौसेना का विद्रोह (19 फरवरी 1946 ई.)
प्रधानमंत्री एटली की घोषणा ( 15 मार्च 1946 ई. )
कैबिनेट मिशन का आगमन ( 24 मार्च 1946 ई. )
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ( 16 अगस्त 1946 ई.)
अंतरिम सरकार की स्थापना ( 2 सितंबर 1946 ई.)
माउंटबेटन योजना ( 3 जून 1947 ई. )
स्वतंत्रता मिली ( 15 अगस्त 1947 ई. )
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