कम लागत में अधिक मुनाफा: जानिए मशरूम की खेती का पूरा तरीका
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Mushroom Farming |
1. मशरूम क्या है? (Mushroom Farming in hindi)
मशरूम एक प्रकार का फफूंद (Fungus) है, जो न तो पौधा होता है और न ही पशु। यह एक प्राकृतिक जीव है जो अपघटनशील जैविक पदार्थों जैसे – भूसा, लकड़ी की छाल, गोबर, या पत्तियों पर उगता है। इसे हिंदी में "छत्रक" या "खुम्बी" भी कहा जाता है।
मशरूम का खास हिस्सा उसका छाता जैसा ऊपरी भाग होता है, जिसे हम खाते हैं। यह दिखने में छोटा, मुलायम और सफेद, भूरा या हल्का गुलाबी रंग का हो सकता है। मशरूम स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन B और D, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है।
मशरूम का उपयोग केवल खाने में ही नहीं, बल्कि दवाइयों और सप्लीमेंट्स में भी किया जाता है। यही कारण है कि आज मशरूम की खेती एक सफल और लाभकारी व्यवसाय बन चुका है, जिसे गांव हो या शहर, कोई भी व्यक्ति थोड़ी सी जगह और ज्ञान के साथ शुरू कर सकता है।
नोट: सभी मशरूम खाने योग्य नहीं होते। कुछ जंगली मशरूम ज़हरीले भी होते हैं, इसलिए हमेशा प्रमाणित स्रोत से उगाए गए मशरूम ही उपयोग करें। (Mushroom Farming in hindi)
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2. भारत में मशरूम की खेती का बढ़ता रुझान (Mushroom Farming in hindi)
भारत में पारंपरिक खेती के विकल्प के रूप में मशरूम की खेती तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। कम लागत, सीमित स्थान और कम समय में मुनाफा देने वाली इस खेती ने किसानों के बीच एक नया विश्वास पैदा किया है। खासकर छोटे और सीमांत किसान, महिलाएं और युवाओं ने मशरूम उत्पादन को आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त कदम के रूप में अपनाया है।
मशरूम की मांग शहरी बाजारों में तेजी से बढ़ रही है क्योंकि यह न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि प्रोटीन, विटामिन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट जैसे पोषक तत्वों से भरपूर भी होता है। बदलती जीवनशैली और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ने इसे ‘सुपर फूड’ की श्रेणी में ला खड़ा किया है। यही कारण है कि होटल, रेस्टोरेंट, सुपरमार्केट और हेल्थ-फूड इंडस्ट्री में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
भारत में बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य मशरूम उत्पादन के प्रमुख केंद्र बन चुके हैं। हिमाचल प्रदेश का सोलन तो ‘मशरूम सिटी’ के नाम से जाना जाता है, जहां राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र स्थित है। सरकार भी (Mushroom Farming in hindi)मशरूम किसानों को ट्रेनिंग, सब्सिडी और बीज (स्पॉन) की सुविधा देकर प्रोत्साहित कर रही है। महिला स्वयं सहायता समूहों और युवा उद्यमियों के लिए मशरूम की खेती एक सफल स्टार्टअप मॉडल बनकर उभर रही है।
आज के समय में तकनीक आधारित खेती जैसे एयर-कंडीशन्ड रूम, हाइड्रोपोनिक सिस्टम और कंट्रोल्ड इनवायरनमेंट फार्मिंग ने इसे और भी आसान और व्यावसायिक बना दिया है। अब किसान सालभर मशरूम उगा सकते हैं, जिससे उनकी आमदनी स्थायी और संतुलित हो रही है।
इस तरह देखा जाए तो भारत में मशरूम की खेती न केवल कृषि क्षेत्र को एक नया आयाम दे रही है, बल्कि रोजगार और पोषण के क्षेत्र में भी एक क्रांति ला रही है।
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3. मशरूम की प्रमुख किस्में – बटन, ऑयस्टर और मिल्की मशरूम (Mushroom Farming in hindi)
1. बटन मशरूम
भारत में सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला और उगाया जाने वाला मशरूम है। यह मुख्य रूप से ठंडे मौसम में उगता है और इसकी खेती के लिए 15°C से 20°C तापमान उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग सफेद या क्रीम जैसा होता है और आकार गोल, बटन जैसा होता है, इसीलिए इसे 'बटन मशरूम' कहा जाता है। इसका उपयोग पिज़्ज़ा, पास्ता, सब्ज़ी, सूप और ग्रेवी में बड़े पैमाने पर किया जाता है(Mushroom Farming in hindi)। बटन मशरूम प्रोटीन, विटामिन B12 और पोटैशियम का अच्छा स्रोत होता है। इसकी खेती थोड़ी तकनीकी होती है लेकिन बाजार में इसकी मांग अधिक होने के कारण इसका लाभ भी ज़्यादा होता है। बड़ी होटल चेन और सुपरमार्केट में इसकी आपूर्ति लगातार होती रहती है, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलते हैं।
2. ऑयस्टर मशरूम (Oyster Mushroom)(Mushroom Farming in hindi)
ऑयस्टर मशरूम को हिंदी में 'ढींगरी मशरूम' भी कहा जाता है। यह मशरूम अपने सीप की तरह फैले आकार के कारण 'ऑयस्टर' नाम से जाना जाता है। इसकी खेती भारत के लगभग हर भाग में की जा सकती है, क्योंकि इसे गर्म और नम वातावरण पसंद होता है। 20°C से 30°C तापमान में यह आसानी से उग जाता है। इसकी खेती बहुत ही आसान, सस्ती और कम समय में फल देने वाली होती है, इसलिए शुरुआती किसान अक्सर ऑयस्टर मशरूम से शुरुआत करते हैं। इसे भूसे पर उगाया जा सकता है और इसकी खेती 15-20 दिनों में तैयार हो जाती है। पोषण की दृष्टि से इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में होता है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित होता है और यह हृदय के लिए लाभकारी माना जाता है।
3. मिल्की मशरूम (Milky Mushroom)
मिल्की मशरूम गर्म और आर्द्र जलवायु में उगाया जाने वाला सफेद रंग का मोटा मशरूम होता है। यह दिखने में दूध जैसा सफेद होता है, इसलिए इसे "मिल्की मशरूम" कहा जाता है। इसकी खेती विशेष रूप से दक्षिण भारत में अधिक होती है, लेकिन अब उत्तरी भारत के कई हिस्सों में भी इसकी खेती की जा रही है। इसके लिए 25°C से 35°C तापमान और लगभग 80-90% नमी की आवश्यकता होती है। इसकी शेल्फ लाइफ ऑयस्टर से अधिक होती है, यानी यह अधिक समय तक ताज़ा रह सकता है, जिससे इसे दूर के बाजारों में भी आसानी से बेचा जा सकता है। मिल्की मशरूम का स्वाद हल्का मीठा और कुरकुरा होता है, जिसे कई लोग सब्जी या फ्राई करके खाते हैं। यह आयरन और विटामिन D से भरपूर होता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
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4. मशरूम की खेती के लिए ज़रूरी जलवायु और तापमान (Mushroom Farming in hindi)
मशरूम की सफल खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। चूंकि मशरूम कोई साधारण पौधा नहीं बल्कि एक फफूंद (Fungus) है, इसलिए इसकी वृद्धि के लिए सामान्य फसल जैसी धूप की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि इसके लिए आर्द्रता (नमी) और नियंत्रित तापमान अधिक आवश्यक होते हैं।
मशरूम की खेती सामान्यतः अंधेरे या कम रोशनी वाले वातावरण में की जाती है, जहां तापमान और नमी को कृत्रिम या प्राकृतिक तरीके से नियंत्रित किया जा सके। अलग-अलग किस्मों के मशरूम के लिए जलवायु और(Mushroom Farming in hindi) तापमान की आवश्यकताएं भी अलग होती हैं:
बटन मशरूम के लिए:
बटन मशरूम को उगाने के लिए ठंडी जलवायु चाहिए। इसके लिए आदर्श तापमान 15°C से 22°C होता है और 80-90% तक नमी ज़रूरी होती है। यह मुख्य रूप से सर्दियों में उगाया जाता है, खासकर अक्टूबर से फरवरी के बीच। इसके उत्पादन के लिए शेड्स, कूलर या एसी जैसे कृत्रिम साधनों की मदद ली जाती है।
ऑयस्टर मशरूम के लिए: (Mushroom Farming in hindi)
ऑयस्टर मशरूम यानी ढींगरी मशरूम गर्म और नम जलवायु को पसंद करता है। इसकी खेती के लिए 20°C से 30°C तक का तापमान आदर्श होता है। यह गर्मी और मॉनसून के मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है। इसकी खासियत यह है कि इसे कम संसाधनों और प्राकृतिक वातावरण में भी उगाया जा सकता है, जिससे यह छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित होता है।
मिल्की मशरूम के लिए:
मिल्की मशरूम की खेती के लिए अधिक गर्म और आद्र्र जलवायु चाहिए होती है। इसका आदर्श तापमान 25°C से 35°C तक होता है और इसके लिए करीब 85-90% नमी की ज़रूरत होती है। यह मशरूम मुख्य रूप से दक्षिण भारत में लोकप्रिय है, लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों में भी इसकी खेती होने लगी है।
सामान्य बातें:
मशरूम की खेती के दौरान वातावरण में अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि अत्यधिक गर्मी या सूखापन मशरूम के विकास को रोक सकता है या फसल को खराब कर सकता है। अगर प्राकृतिक रूप से उचित तापमान और नमी उपलब्ध नहीं है, तो इनक्यूबेशन रूम, ह्यूमिडिटी कंट्रोलर, और वेंटिलेशन सिस्टम की मदद से भी अनुकूल वातावरण तैयार किया जा सकता है।
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5. शुरुआती किसानों के लिए आसान मशरूम – कौन-सा चुनें?
अगर आप मशरूम की खेती की शुरुआत करना चाहते हैं और सोच रहे हैं कि कौन-सी किस्म सबसे आसान और सुरक्षित रहेगी, तो इसका जवाब है – ऑयस्टर मशरूम (Oyster Mushroom)। यह मशरूम भारत के लगभग हर क्षेत्र में उगाया जा सकता है और इसकी खेती में न ज्यादा खर्च आता है, न ज्यादा तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है। इसलिए यह नए किसानों, महिलाओं और युवाओं के लिए सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है।
ऑयस्टर मशरूम को हिंदी में ढींगरी मशरूम भी कहा जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत जल्दी तैयार हो जाता है – सिर्फ 15 से 20 दिनों में फसल लेने लायक बन जाता है। इसकी खेती के लिए भूसा (गेहूं या धान का), पुराने अखबार, सूखी पत्तियाँ आदि जैसे सस्ते जैविक पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लागत काफी कम आती है। साथ ही, इसे किसी भी छोटे कमरे, छप्पर के नीचे, टिन शेड या प्लास्टिक टनल में भी उगाया जा सकता है – ज़रूरी नहीं कि बड़ी जगह या खेत हो।(Mushroom Farming in hindi)
ऑयस्टर मशरूम के लिए तापमान 20°C से 30°C और नमी लगभग 80% होनी चाहिए। न तो इसमें अधिक सर्दी चाहिए, न बहुत अधिक गर्मी। यह सामान्य घरेलू तापमान में भी पनप जाता है, जिससे इसका प्रबंधन सरल होता है। इसकी बिक्री भी बहुत आसान है –(Mushroom Farming in hindi) होटल, रेस्टोरेंट, मंडी, लोकल मार्केट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इसकी अच्छी माँग रहती है।
इसके अलावा ऑयस्टर मशरूम पोषक तत्वों से भरपूर होता है – इसमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जिससे यह एक हेल्दी फूड के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह सब्ज़ी, स्नैक्स, फ्राई और ग्रेवी जैसे कई व्यंजनों में इस्तेमाल होता है, जिससे इसके उपभोक्ता वर्ग भी बड़ा है।
इसलिए यदि आप मशरूम खेती के क्षेत्र में नया कदम रख रहे हैं, तो ऑयस्टर मशरूम आपके लिए सबसे उपयुक्त और लाभकारी विकल्प हो सकता है – यह आसान, सस्ता, जल्दी तैयार होने वाला और अधिक लाभ देने वाला मशरूम है।
6. मशरूम बीज (स्पॉन) क्या होता है और कहां से लें?
मशरूम के बीज को सामान्य फसलों की तरह बीज नहीं कहा जाता, बल्कि इसे "स्पॉन" (Spawn) कहा जाता है। स्पॉन दरअसल एक ऐसी सामग्री होती है जिसमें मशरूम के माइसीलियम (Mycelium) यानी फफूंद का जीवित भाग विकसित किया जाता है। इसे अनाज (जैसे गेहूं या जौ), लकड़ी की छीलन, या अन्य जैविक माध्यमों में तैयार किया जाता है। जब यह स्पॉन तैयार हो जाता है, तो इसे सब्सट्रेट (भूसा, लकड़ी की बुरादे आदि) में मिलाकर मशरूम की खेती की जाती है। यही स्पॉन मशरूम की "जड़" की तरह काम करता है और बाद में मशरूम के फल निकाले जाते हैं।
स्पॉन कहां से लें? (विश्वसनीय स्रोत)(Mushroom Farming in hindi)
अगर आप गुणवत्तापूर्ण उत्पादन चाहते हैं, तो स्पॉन हमेशा प्रामाणिक और प्रमाणित स्रोतों से ही लेना चाहिए। नीचे कुछ प्रमुख और भरोसेमंद जगहें दी गई हैं जहाँ से आप स्पॉन खरीद सकते हैं:
1. ICAR – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मशरूम इकाइयों से जैसे –
राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, सोलन (हिमाचल प्रदेश)
ICAR-डायरेक्टरेट ऑफ मशीनीकरण एंड टेक्नोलॉजी, करनाल (हरियाणा)
2. राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के मशरूम विभाग
जैसे –
जी.बी. पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर (उत्तराखंड)
पी.ए.यू., लुधियाना (पंजाब)
बी.ए.यू., रांची (झारखंड)
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर
3. सरकारी किसान सेवा केंद्र (Agro Service Centers)
जहाँ पर कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में बीज वितरित किया जाता है।
4. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स
कई सर्टिफाइड एग्री स्टार्टअप्स और कंपनियाँ जैसे Agrifung, Mushroom World Group, Exotic Mushrooms India आदि ऑनलाइन उच्च गुणवत्ता का स्पॉन बेचती हैं।
खरीदते समय यह ज़रूर जांचें कि कंपनी FSSAI या ISO सर्टिफाइड हो।
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महत्वपूर्ण सलाह:(Mushroom Farming in hindi)
हमेशा ताजा और संक्रमणमुक्त स्पॉन ही खरीदें।
खराब स्पॉन से फसल में फफूंदी, गंध और कम उत्पादन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
खरीदते समय उत्पादन की तारीख, एक्सपायरी और स्पॉन का तापमान सहनशीलता ज़रूर पूछें।
7. भूसा तैयार करने की विधि – मशरूम उत्पादन का पहला कदम
मशरूम की खेती का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है – भूसा (सब्सट्रेट) तैयार करना, क्योंकि इसी में स्पॉन मिलाकर मशरूम की वृद्धि करवाई जाती है। अगर भूसा ठीक से तैयार नहीं किया गया, तो फसल में फफूंद, गंध या रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसकी तैयारी बहुत सावधानी और सफाई से करनी होती है।
भूसे का चयन:
मशरूम के लिए आमतौर पर गेहूं, धान, जौ या बाजरे का सूखा और पुराना भूसा सबसे उपयुक्त माना जाता है। भूसा बहुत अधिक सड़ा हुआ या ताज़ा नहीं होना चाहिए। इसका रंग हल्का सुनहरा और खुशबू सामान्य होनी चाहिए। भूसे की लंबाई 2 से 5 सेमी के बीच होनी चाहिए ताकि यह आसानी से पैक होकर नमी को सोख सके।
भूसे की कटाई और भिगोना:
सबसे पहले भूसे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। अब एक साफ टंकी, ड्रम या टब में इसे 8 से 12 घंटे तक पानी में भिगोकर छोड़ दें। यह कदम जरूरी है क्योंकि इससे भूसा नरम हो जाता है और उसमें नमी आ जाती है जो मशरूम के विकास के लिए जरूरी है।
पाश्चुरीकरण (उबालना या भाप देना):
भीगे हुए भूसे को बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक जीवाणुओं से मुक्त करने के लिए पाश्चुरीकरण करना जरूरी होता है। इसके दो तरीके हैं:
1. गर्म पानी से उबालना (Hot Water Treatment):
एक बड़े बर्तन में पानी को 80–90°C तक गर्म करें।
उसमें भूसे को 1 से 1.5 घंटे तक उबालें।
फिर उसे बाहर निकालकर 10–12 घंटे के लिए किसी साफ कपड़े या छाया में फैला दें ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए।
2. भाप से उपचार (Steam Pasteurization):(Mushroom Farming in hindi)
यह तरीका थोड़ा आधुनिक है।
बंद ड्रम या टैंक में भूसे को रखकर नीचे से भाप दी जाती है।
इससे भी 1–2 घंटे में भूसा कीटाणुमुक्त हो जाता है।
भूसे को ठंडा करना और नमी जांचना:
पाश्चुरीकरण के बाद भूसे को ठंडा करना जरूरी है। जब वह हाथ से छूने लायक तापमान पर आ जाए, तो उसकी नमी जांचें – अगर हाथ में दबाने पर थोड़ा-सा पानी निकलता है लेकिन टपकता नहीं है, तो वह उपयोग के लिए तैयार है।
भूसा पैकिंग के लिए तैयार:
अब यह भूसा स्पॉन (बीज) मिलाकर पॉलीबैग, टब, ट्रे या कंटेनर में भरा जा सकता है। इस तरह सही ढंग से तैयार किया गया भूसा मशरूम की अच्छी और स्वस्थ फसल के लिए मजबूत नींव बनाता है।
8. बैग में भराई और इनक्यूबेशन प्रक्रिया (Mushroom Farming in hindi)
जब भूसे को अच्छे से तैयार कर लिया जाता है और उसमें आवश्यक नमी और सफाई का ध्यान रखा जाता है, तो अगला कदम होता है – बैग में भराई (Bag Filling) और फिर इनक्यूबेशन (Incubation) की प्रक्रिया। यह दोनों चरण मशरूम की वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक हैं और इन्हें साफ-सुथरे, नियंत्रित वातावरण में ही किया जाना चाहिए।
1. बैग में भराई की प्रक्रिया (Bag Filling Process):
सबसे पहले पॉलीथिन बैग तैयार करें। आमतौर पर 18” x 14” साइज के बैग उपयोग किए जाते हैं, जिनमें पंच (छेद) पहले से बने होते हैं ताकि हवा अंदर जा सके।
अब भूसे और स्पॉन (मशरूम बीज) को परत दर परत (layer by layer) भरें।
उदाहरण के लिए – एक परत भूसे की, फिर हल्की परत स्पॉन की, फिर भूसा, फिर स्पॉन… ऐसे करते हुए पूरा बैग भर दें।
आमतौर पर एक बैग में 5-6 परतें होती हैं, और स्पॉन की मात्रा कुल भूसे के वजन का लगभग 5-10% होनी चाहिए।
सबसे ऊपर भूसे की परत रखें और बैग का मुंह रबर बैंड या डोरी से अच्छे से बंद कर दें।(Mushroom Farming in hindi)
ध्यान रखें: भरते समय बैग को बहुत ज्यादा टाइट न भरें, वरना हवा का प्रवाह रुक सकता है।
2. इनक्यूबेशन प्रक्रिया (Incubation Process):
भराई के बाद बैगों को एक साफ-सुथरे, अंधेरे और ठंडे कमरे में रख दिया जाता है, जिसे इनक्यूबेशन रूम कहा जाता है।
इस कमरे का तापमान 25°C से 30°C और नमी 70% से अधिक होनी चाहिए।
बैगों को लकड़ी की शेल्फ, बांस की रैक या लोहे की स्टैंड पर साफ-सुथरी लाइन में व्यवस्थित करके रखें।
इस दौरान बैग को 10 से 20 दिनों तक ऐसे ही छोड़ दिया जाता है ताकि स्पॉन पूरे भूसे में फैल जाए।
8–10 दिन में बैग के अंदर सफेद धागे जैसे मायसीलियम दिखने लगते हैं, जो इस बात का संकेत होता है कि मशरूम बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
इनक्यूबेशन में ध्यान देने योग्य बातें:(Mushroom Farming in hindi)
कमरे में धूप नहीं आनी चाहिए।
तापमान स्थिर रहना चाहिए – बहुत गर्म या बहुत ठंडा न हो।
हवा की हल्की आवाजाही हो लेकिन सीधा पंखा या हवा न लगे।
हर 2-3 दिन में बैगों की जांच करते रहें, कहीं कोई फफूंदी या दुर्गंध तो नहीं हो रही।
जब बैग के अंदर का पूरा भूसा सफेद मायसीलियम से भर जाए (यानि पूरा "colonized" हो जाए), तो समझ लीजिए इनक्यूबेशन पूरी हो चुकी है और अब अगला चरण शुरू किया जा सकता है – फ्रूटिंग प्रक्रिया, जिसमें बैग को खोलकर मशरूम उगने दिए जाते हैं।
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9. फलन कैसे होता है? – मशरूम उगाने का वैज्ञानिक तरीका
मशरूम की खेती में जब बैग में स्पॉन पूरी तरह से फैल जाता है और भूसा सफेद मायसीलियम से ढक जाता है, तब आता है अगला महत्वपूर्ण चरण – फलन (Fruiting)। यही वह समय होता है जब असली मशरूम दिखाई देने लगता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह वातावरणीय नियंत्रण पर आधारित होती है और इसे वैज्ञानिक तरीके से करना बहुत ज़रूरी होता है, ताकि अच्छे आकार, रंग और गुणवत्ता वाले मशरूम प्राप्त हो सकें।
फलन शुरू करने की तैयारी:
जब बैग में मायसीलियम पूरे भूसे में अच्छी तरह फैल जाए (लगभग 15–20 दिन बाद), तब बैग को इनक्यूबेशन रूम से निकालकर किसी ऐसे कमरे में रखें जहाँ प्राकृतिक रोशनी, अच्छी वेंटिलेशन, और उचित नमी हो।
अब बैग के ऊपर या किनारों पर छोटे-छोटे कट (X आकार के) लगाए जाते हैं ताकि वहीं से मशरूम बाहर निकल सकें।(Mushroom Farming in hindi)
कट लगाने के बाद बैग को खुली हवा में (लेकिन सीधी धूप से बचाकर) खड़ी या लटकी हुई अवस्था में रखें।
फ्रूटिंग रूम की जलवायु कैसी होनी चाहिए?
तापमान: 18°C से 25°C
आर्द्रता (Humidity): 85% से 95%
रोशनी: धीमी सफेद रोशनी, रोज़ाना 10–12 घंटे पर्याप्त होती है
हवा: कमरे में हल्की हवा का आवागमन हो, लेकिन तेज़ हवा न चले
फलन के दौरान स्प्रे बॉटल से बैग या कमरे में दिन में 2–3 बार हल्का पानी छिड़कें ताकि नमी बनी रहे। ध्यान रखें – पानी सिर्फ बैग के बाहर छिड़कना है, अंदर नहीं डालना।
मशरूम निकलना कब शुरू होता है?
फलन की प्रक्रिया शुरू होने के 5–7 दिन बाद ही बैग से छोटे-छोटे सफेद बटन या गुच्छों के रूप में मशरूम निकलने लगते हैं। ये धीरे-धीरे बड़े होते हैं और 7–10 दिन में तोड़ने लायक हो जाते हैं। ऑयस्टर मशरूम आमतौर पर गुच्छों में निकलता है और इसका कैप (टोपी) पूरी तरह खुलने से पहले ही इसे तोड़ लेना चाहिए, क्योंकि तभी इसका स्वाद और बाजार मूल्य सबसे अच्छा होता है।(Mushroom Farming in hindi)
एक बैग से कितनी बार फलन होता है?
प्रत्येक बैग से 2–3 फ्लश (फसल) तक मशरूम निकलते हैं। हर फ्लश के बीच 7–10 दिन का अंतर होता है। जैसे ही एक फलन समाप्त होता है, बैग को फिर से नमी देकर अगले फलन के लिए तैयार किया जा सकता है।
ध्यान देने योग्य बातें:
बहुत अधिक पानी देने से मशरूम सड़ सकते हैं।
बहुत कम नमी होने पर उनका विकास रुक सकता है।
यदि बैग से कोई दुर्गंध या रंग परिवर्तन दिखे तो उसे हटा दें – वह संक्रमित हो सकता है।
इस तरह वैज्ञानिक तरीकों से तापमान, नमी और रोशनी को नियंत्रित करके अच्छी गुणवत्ता और अधिक मात्रा में मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है। यह प्रक्रिया जितनी सरल दिखती है, उतनी ही अनुशासन और स्वच्छता भी माँगती है।
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10. कटाई और संग्रहण – ताजगी कैसे बनाए रखें?
मशरूम की कटाई का सही समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब मशरूम का कैप (टोपी) पूरी तरह खुलने से पहले आकार में पूरा हो जाए, तब उसे तोड़ लेना चाहिए। बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम दोनों को हल्के हाथों से घुमाकर निकाला जाता है ताकि जड़ को नुकसान न हो। कटाई के तुरंत बाद मशरूम को साफ, सूखे और ठंडे स्थान पर रखें। लंबे समय तक ताजगी बनाए रखने के लिए उन्हें ठंडे पानी में धोने के बजाय साफ कपड़े से पोंछें और 6-10 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करें। छोटे किसान फ्रिज में और बड़े उत्पादक कोल्ड स्टोरेज का उपयोग करते हैं। अगर मशरूम को 24 घंटे के भीतर बाजार में नहीं भेजा जाता, तो उसकी गुणवत्ता और कीमत दोनों पर असर पड़ता है। इसलिए समय पर कटाई और उपयुक्त संग्रहण ताजगी और मुनाफे की कुंजी है।(Mushroom Farming in hindi)
11. मशरूम की मार्केटिंग और बिक्री के स्मार्ट तरीके
मशरूम की पैदावार के बाद सबसे अहम पड़ाव होता है – स्मार्ट मार्केटिंग और बिक्री। किसान यदि पारंपरिक तरीकों से ही बिक्री करें, तो उन्हें उतना लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए अब समय है सीधा उपभोक्ता तक पहुंचने का। इसके लिए किसान हाट, किसान मंडी, रेस्टोरेंट्स, होटल्स, और लोकल सुपरमार्केट से सीधे संपर्क करें। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे WhatsApp, Instagram, Facebook पर "Fresh Organic Mushroom" के नाम से ब्रांड बनाकर घरेलू ऑर्डर लिए जा सकते हैं। इसके अलावा, मशरूम को ड्राई करके या अचार, सूप, पाउडर आदि में प्रोसेस कर के भी बेचा जा सकता है। किसानों के लिए FPOs और किसानों के समूह के ज़रिए थोक में सप्लाई और ऑनलाइन बिक्री प्लेटफॉर्म (जैसे Amazon, BigBasket) से जुड़ना भी फायदेमंद हो सकता है।
12. मशरूम से कमाई – लागत, मुनाफा और संभावनाएं (Mushroom Farming in hindi)
मशरूम की खेती कम जगह, कम समय और कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है। यदि कोई किसान 100 बैग से शुरुआत करता है, तो इसकी अनुमानित लागत ₹20,000 से ₹25,000 तक हो सकती है, जिसमें स्पॉन, भूसा, बैग और बिजली खर्च शामिल हैं। एक बैग से लगभग 1.5 से 2 किलो तक उत्पादन होता है। बाज़ार में इसकी कीमत ₹120 से ₹200 प्रति किलो या उससे भी ज्यादा होती है। इस तरह एक सीजन में किसान ₹50,000 से ₹70,000 तक कमा सकता है। खास बात यह है कि यह फसल 45 दिनों में तैयार हो जाती है और सालभर उगाई जा सकती है। यदि किसान सही तकनीक, ब्रांडिंग और बिक्री रणनीति अपनाए, तो मशरूम से लाखों रुपये की कमाई संभव है।
13. घर में मशरूम उगाने का तरीका
अगर आप कम जगह में मशरूम उगाना चाहते हैं, तो घर में ही छोटा सेटअप बनाना बेहद आसान है। इसके लिए एक 6x6 फीट का कमरा या स्टोर रूम काफी है। वहां अंधेरा और ठंडक बनाए रखें। सबसे पहले भूसा, स्पॉन और पॉलीबैग की व्यवस्था करें। भूसे को भिगोकर तैयार करें, फिर स्पॉन के साथ परतों में बैग में भरें। बैग को लटकाकर या रैक पर रखें और इनक्यूबेशन के लिए 15 दिन तक अंधेरे में रखें। उसके बाद कटिंग करके रोशनी और नमी वाले वातावरण में रखें ताकि फलन शुरू हो सके। पानी का हल्का स्प्रे करें और साफ-सफाई बनाए रखें। 1-2 महीने में फसल मिलने लगती है। यह तरीका छात्र, गृहिणी या रिटायर्ड व्यक्ति के लिए आय का एक शानदार घरेलू विकल्प है।(Mushroom Farming in hindi)
14. सरकारी सहायता और प्रशिक्षण – कहां से लें मशरूम की ट्रेनिंग? (Mushroom Farming in hindi)
मशरूम की खेती शुरू करने से पहले वैज्ञानिक प्रशिक्षण लेना बहुत जरूरी है। भारत सरकार और राज्य सरकारें समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर और योजनाएं चलाती हैं। मशरूम की खेती की सबसे प्रसिद्ध ट्रेनिंग ICAR – राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, सोलन (हिमाचल प्रदेश) में होती है। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), राज्य कृषि विश्वविद्यालय, और कृषि विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय भी मशरूम प्रशिक्षण देते हैं। कुछ निजी संस्थाएं और यूट्यूब चैनल भी ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रदान करते हैं। प्रशिक्षण के दौरान किसानों को स्पॉन बनाना, फसल प्रबंधन, विपणन और रोग नियंत्रण जैसे सभी पहलुओं की जानकारी दी जाती है। सरकार कई बार उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी भी देती है। ऐसे में प्रशिक्षण लेना एक सफल व्यवसाय की नींव रखता है।
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15. सावधानियां और सामान्य समस्याएं – नमी, फफूंद और कीटों से बचाव
मशरूम की खेती बहुत संवेदनशील होती है और इसे बेहद साफ-सुथरे और नियंत्रित वातावरण में करना होता है। सबसे आम समस्याएं हैं – अधिक नमी, फफूंद, कीट और संक्रमण। (Mushroom Farming in hindi)यदि कमरे में बहुत अधिक नमी हो गई तो बैग पर काली या हरी फफूंद लग सकती है, जिससे पूरी फसल खराब हो जाती है। नमी को नियंत्रित करने के लिए छिड़काव सीमित करें और हवा का वेंटिलेशन बनाए रखें। कभी-कभी कीट बैग के छेद से अंदर घुस जाते हैं, इसके लिए नेट या जाली का प्रयोग करें। काम करने से पहले हाथ धोना, उपकरणों को सैनिटाइज करना और संक्रमित बैगों को तुरंत अलग करना बहुत जरूरी होता है। अगर आप ये सावधानियां बरतें तो आपकी फसल स्वस्थ, सुंदर और लाभदायक रहेगी।
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