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Kabir Dohe ! कबीर जी के प्रसिद्ध दोहे व् उनके हिंदी अर्थ

कबीर जी के प्रसिद्ध दोहे व् उनके हिंदी अर्थ - Kabir Dohe in Hindi

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Sant Kabir

 कबीर जी एक ऐसे संत जिनके मुख से निकली प्रत्येक वाणी आदर्श वाक्यों व् जीने की कला में तब्दील होती गई।  कबीर जी भक्तिकाल के महान संतो में भी पहले स्थान पर विराजमान है, जिनके दोहे व् जिनकी जीवन जीने की कला ने करोड़ो लोगो को प्रेम भाव से जीना सिखाया व् जिन्होंने समाज में फैले आडम्बर, जैसे उच्च नीच, छुवाछुत इत्यादि को समाज की गंदगी बताया व् समाज में आपसी भाई चारे व् प्रेम भाव से रहने पर बल दिया साथ ही कबीर जी द्वारा लिखे गए विश्व प्रसिद दोहे व् उनके सार ने लोहो को अलग दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया व् आज भी कबीर जी के दोहे विश्व का मार्गदर्शन करते है 


जी हां दोस्तों, आज का लेख हमारा भारत की पावन धरती पर जन्मे भारत के महान संत श्री कबीर दास जी से सम्बंधित है, आज हम आपको कबीर दास जी के विश्व प्रसिद 10 दोहो के बारे में बताने जा रहे है जिन्हें पढ़ कर व् अपने जीवन में उतार कर आप अपने जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते है, तो देर न करते हुए चलिए जानते है


कबीर जी के  प्रसिद्द दोहे व् उनके हिंदी अर्थ - Kabir Dohe in Hindi

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Kabir Dohe in Hindi


काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि प्राणी अपने कार्य को जल्दी से जल्दी समाप्त कर देना चाहिए, कबीर जी के कहे अनुसार जो कार्य आप कल करने वाले थे उसे आज ही कर दो व् जो कार्य आज करने वाले है उसे अभी तुरंत शुरू कर दे, क्योंकि पल भर में प्रलय आ जाएगा तो आप अपना काम कब करोगे , इसमें हमें समय के महत्व के बारे में बताते हैं। कबीर जी समय को सबसे महत्वपूर्ण बता रहे है .


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि प्राणी अपने मुख से निकले शब्दो में शालीनता व् कोमलता लेकर आओ, कबीर जी के कहे अनुसार मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो सामने वाले को सुनने से अच्छा लगे और उन्हें सुख की अनुभूति हो और साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव है। 


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है मनुष्य अपने जीवन काल में दुसरो में बुराई खोजता रहता है व् कभी भी अपने अंदर झांककर नहीं देखता, अगर वह अपने मन के अंदर जानकर देखेगा तो उस से बुरा इंसान कही नहीं मिलेगा, इंसान को दूसरे कि बुराई खोजने से पहले अपने भीतर छिपी बुराई को खोजना चाहिए व् उन्हें दूर करना चाहिए। 


गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं।

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय ।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा है क्युकि कबीर जी के अनुसार अगर उनके सामने गुरु व् गोबिंद (भगवान् ) दोनों ही आ जाएं तो वे सर्वप्रथम गुरु के चरणों को स्पर्श करेंगे क्युकि गुरु ही एकमात्र वो सीढ़ी थी जिन्होंने गोबिंद जी को पाने का मार्ग बताया 



दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।



इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि मनुष्य के जीवन में दुःख आने पर ही वह ईश्वर को याद करता है वो सुख में ईश्वर को याद करना भूल जाता है अगर मनुष्य सुख में ईश्वर को याद करे तो उसको दुःख आएंगे ही नहीं अर्थात, ईश्वर को हरपल हर-समय याद रखना चाहिए। 


कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि मनुष्य को हमेसा सबका भला ही सोचना चाहिए उसे किसी का भी बुरा नहीं सोचना चाहिए कबीर जी के अनुसार आपकी किसी से दोस्ती नहीं है और अगर किसी से दुश्मनी भी नहीं है तो ये जीवन भी श्रेठ है


साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि मनुष्य को अत्यधिक का लोभ नहीं करना चाहिए व् कबीर जी के दोहे अनुसार कबीर जी परमात्मा  से इतना ही मांग रहे है कि जिसमे उनके परिवार का भरण पोषण हो जाएं व् उनके द्वार पर आने वाला साधु संत भी भूखा न जाएं


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।


इस दोहे में कबीर जी समझा रहे है कि मनुष्य को साधु संत कि जाति कभी नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उनके ज्ञान को ही पूछना चाहिए अर्थार्त साधु का ज्ञान ही अनमोल है जाति का कोई मोल नहीं, इसी प्रकार तलवार का ही मोल है म्यान का क्या मोल। 


 माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।


इस दोहे में कबीर जी ने बेहद सुंदर सन्देश दिया है,इस दोहे में कबीर जी मनुष्य को समझा रहे है कि समय सदैव एक सा नहीं रहता व् दोहे अनुसार मिटी कुम्हार से कह रही है कि कुम्हार तू मुझे क्यों रोंदे जा रहा है एक दिन ऐसा भी आयेगा में तुझे रोंद दूंगी अर्थार्त समय का चक्र सदैव एक सा नहीं रहता है 


बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

 

इस दोहे में भी कबीर जी ने बेहद सुंदर सन्देश दिया है, इस दोहे के कहे अनुसार मनुष्य को खजूर की तरह भी बड़ा नहीं होना चाहिए की आम लोगो की पहुंच ही उन तक न हो पाए , दोहे अनुसार खजूर का पेड़ बड़ा होने पर भी क्या बड़ा है जो किसी पक्षी को छाया नहीं दे सकता व् जिसके फल भी बेहद उचाई पर लगते है।  


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